हसीन दिलरुबा: ठाँय…ठाँय ठुस्ससससस : मूवी रिव्यू
- Dheerajsarthak films
- Jul 4, 2021
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यूपी पुलिस के जवानों ने एक बार बदमाशों को पकड़ने के लिए जब हथियार चलाना चाहा तो उससे फ़ायर नहीं हो पाया। बेचारे जवान, मुँह से ही गोलियों की आवाज़ निकालने की कोशिश करते रहे। यूपी पुलिस के जवानों को अंदाज़ा था कि बदमाश उनकी आवाज़ से डर जाएँगे और सरेंडर कर देंगे। सच आप भी जानते हैं। पुलिस की इस हरकत पर बदमाश कितने दिनों तक हँसते रहे, हमें इसके बारे में जानकारी नहीं मिल पाई। नेटफिलिक्स पर आई फ़िल्म हसीन दिलरुबा को देखकर बार-बार यूपी पुलिस वाली घटना याद आती रही। खोदा पहाड़, निकली चुहिया वो भी मरी हुई…विज्ञापन बनाने वाले विनील मैथ्यू की फ़िल्म हसीन दिलरुबा थी तो ओवरलोडेड पर समय पर ठुस्स हो गई।
तापसी पन्नू, विक्रांत मैस्सी, हर्षवर्धन राणे, आदित्य श्रीवास्तव और दयाशंकर पांडेय की अदाकारी ने बार-बार आग लगाने की कोशिश तो की पर तेज़ हवा में चलताऊ कहानी का धुँआ उड़ गया और पूरे मूड की ऐसी की तैसी कर दी। हालाँकि भगवान झूठ न बुलवाए, अभिनय के आधार पर तापसी की यह महा वाहियात फ़िल्म मानी जाएगी। अभिनय में कोई नई बात नहीं। लगातार रिपीट-रिपीट और रिपीट। ऐसा लगा, मानो कनिका ढिल्लों ने वाक़ई दिनेश पंडित जी का कोई सस्ताऊ उपन्यास पढ़ा हो और उसको बंबइया स्टाइल में नेटफिलिक्स के मुँह पर दे मारा—-लो अब झेलो।
माचो मैन के रूप में अपने पति का सपना देखने वाली रानी (तापसी) की शादी निहायत ही सरल, सुशील और नौकरी करने वाले इंजीनियर रिशु (विक्रांत मैस्सी) से हो गई। रिशु, माचो मैन की क्षमता पाने और बीवी की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए ताक़त की मीठी गोलियाँ फाँकने लगता है। फिर भी बात नहीं बनती है। हालाँकि यह बार-बार दिखाने की कोशिश होती है कि रिशु अपनी बीवी को बहुत चाहता है पर बीवी बार-बार पल्लू गिराकर उसको आमंत्रित भी करती है। यक़ीन मानिए, यह सब बड़ा बनावटी लगता है।
फ़िल्म की शुरुआत में ही घर में आग लगती है जिसमें रिशु की मौत हो जाती है। रिशु का चेहरा और पूरा शरीर जाता है पर उसके एक हाथ, जिसपर रानी लिखा होता है वो हमको हैरानी में डालते हुए बच जाता है। दूसरे हाथ का कोई अता पता नहीं मिलता। बस फिर क्या था। पुलिस को समझ आ जाता है कि मरने वाला रिशु है। रानी का पति। समझदार दर्शक को यहीं पर शक हो जाता है कि जिस हाथ पर रानी का नाम का गोदना है, उसको लेकर कोई बड़ा लोचा है। जैसे ही रिशु का भाई और माचो मैन नील (हर्षवर्धन राणे) सीन में आता है समझ आ जाता है कि गोदना वाला हाथ इसी के मत्थे मढ़ा जाएगा। नील और रानी के बीच जिस्मानी उठा-पटक होती है। बाद में नील अपने भाई रिशु को धिक्कारते हुए कहता है कि जब लोग बीवी को शारीरिक सुख नहीं दे सकते तो शादी क्यों करते हैं। रिशु का अपनी पत्नी के प्रति बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया प्यार बनावटी लगने लगता है। इसी हाथापाई में रानी के हाथों नील की हत्या हो जाती है। तब दिनेश पंडित का सस्ता साहित्य काम आता है। रिशु अपनी प्यारी पतिव्रता बीवी रानी के लिए अपने हाथ की क़ुर्बानी देता है और बहते खून के साथ नदी में कूद जाता है।
आनंद एल राय ने जब से सिर्फ़ प्रोड्यूसर का भी काम सँभाला है, उनकी फ़िल्मों में जान ख़त्म होती गई है। जबकि कनिका ढिल्लों ख़ुद अच्छी लेखिका हैं और साथ में हिमांशु शर्मा की पत्नी भी हैं। हिमांशु ख़ुद तनु वेड्स मनु जैसी फ़िल्में लिख चुके हैं। बुझती आग में अमित त्रिवेदी का संगीत थोड़ी जान फूंकने की कोशिश तो करता है पर जब ठंढ ज़्यादा हो तो ऐसे में मामूली माचिस की तिली कितनी देर तक जलेगी। सब बुझ गया। जो बचा है उसके आधार पर कह रहा हूँ समय ज़्यादा हो तो देखना वरना ग़म ग़लत करने के लिए ज़्यादा पैग मार लोगे…
अब समझ सकते हो तो समझो वरना झेलो…

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