top of page
Search

तुम कौन सा तीर मार लिए?



(तस्वीर @Dheeraj Sarthak)


हो सकता है आपके यहाँ तीर को कुछ और कहते हों। लोग स्लैंग में तीर को अलग-अलग नाम से पुकारते हैं। पर यक़ीन मानिए तीर सही निशाने पर मारने का सुख छप्परफाड़ होता है। ऐसा हम कई बार भ्रम में रहकर सोचते हैं। जी, भ्रम में तो आदमी मछली को भी मगरमच्छ का बच्चा समझ लेता है और मनोहर कहानियाँ गढ़ लेता है। भ्रम जो न कराए। पर कई बार आप वाक़ई बहुत बड़ा काम कर देते हैं लेकिन भ्रम में डूबे विश्व गुरु के लोग उसपर इतना प्रचंड इग्नोर मारते हैं कि आपको भ्रम होने लगता है—-काम सच में बड़ा था या भ्रम था।


बचपन का मेरा एक दोस्त था सूंढ़ी (इसका समानार्थी शब्द क्या होता है, बताने में अक्षम हूँ, स्लैंग टाइप है)‘था’ इसलिए कह रहा हूँ कि लंबे अरसे से उससे मुलाक़ात नहीं हुई, न ही उसके बारे में कोई सूचना है। जब पूरा देश अठारह-बीस घंटे काम कर रहा है तो फिर फुर्सत कहाँ मिलती है, इसलिए इतनी माफ़ी तो चलती है। मैं भी सारी यात्राएँ रात में करता हूँ ताकि दिन का सही इस्तेमाल कर सकूँ। काम कर सकूँ। प्रेरणा मिली है भाई, कोई मजाक थोड़े न है। मेरी इसी बात को किसी ‘वरिष्ठ’ (कितना भी वरिष्ठ) पत्रकार ने कह दिया होता तो लाइफ़ बन जाती। खैर, यहाँ तो बड़े-बड़े चौबीस घंटे में पच्चीस घंटा काम करने और दाना चुगाने वाले ज़िम्मेदार कामबाज़ लोग जीवन मरन की बड़ी-बड़ी बातों पर गुमकी मार लेते हैं, मैं तो सिर्फ़ एक दोस्त के लिए माफ़ी माँग रहा हूँ। भाई साब हुआ ये कि, सूंढ़ी ग्रैजुएशन पास गया। वाक़ई में। फ़र्ज़ी डिग्री वाला नहीं। असली डिग्री लेकर खुशी-खुशी डांडिया नाचते-गाते घर पहुँचा। घर में बड़े भाई तो बताया तो बड़े भाई ने बड़े रूखे स्वर में कहा—पास कर गए? ठीक है। कौन सा तीर मार लिए। सूंढ़ी का आत्मविश्वास धड़ाम से ज़मीन पर गिरा। मानो किसी ने ज़ोरदार कंटाप मारा हो। किसी तरह ख़ुद को खींचकर पिताजी के पास ले गया। पिताजी को बताया तो उन्होंने कहा—बसससससससस….? सेकेंड डिविज़न पास करके कौन सा तीर मार लिए? सूंढ़ी को लगा, अब तो जीवन व्यर्थ है। लानत है साला ऐसी ज़िंदगी पर। किसी को फ़र्क़ ही नहीं पड़ रहा है। खैर, सोचा आख़िरी बार एक और कोशिश कर लें। पहुँचा बड़ी बहन के पास। बड़ी बहन ने सुनते ही अपने पति को फ़ोन लगाया और कहा—आप ठीक कहते थे जी, सूंढ़ी को इस जनम में फ़र्स्ट डिविज़न तो आना मुश्किले है। बहन की बात सुनकर सूंढ़ी के शरीर का मानो सारा खून सूख गया हो। मानो भरी भीड़ में मॉब लिंचिंग हो गई हो। जब मैंने सूंढ़ी से पूछा कि सबकी प्रतिक्रिया ऐसी क्यों थी तो उसने कहा—-साला, मेरे घर में हर कोई ग्रैजुएट है वो भी फ़र्स्ट डिविज़न से। हमहीं निकले कुलनाशपीटे। सेकेंड डिविज़न। मैंने समझाते हुए कहा, तुम ये मत देखो कि तुम सेकेंड डिविज़न पास हुए हो। तुम ये देखो कि इस साल पास कितने छात्र हुए हैं। उस साल अर्थशास्त्र में पास करने वाले छात्रों का प्रतिशत सीए के रिज़ल्ट की तरह बहुत कम था। परीक्षा पर चर्चा के दौरान यह सीख मिली है, हमेशा सकारात्मक रहना है। देश चाहे तेल लेने जाए।


आप सूंढ़ी से निखत ज़रीन की तुलना मत कीजिएगा। निखत विश्व चैंपियन बनी हैं। आप उनकी उपलब्धि पर सूंढ़ी के बड़े भाई, पिता या बहन की तरह कुछ भी बोलकर नहीं निकल सकते। मौक़े को लपक कर लिपट जाने और बिना बात के वाहवाही बटोरने वाले लोग कहाँ हैं? निखत भी इसी देश की बेटी है।


मैंने अकसर देखा है, ‘कौन सा तीर मार लिया’ बोलने वाले या ‘उड़ती तीर पकड़ने वाले’ कई बार ख़ुद ही ज़ख़्मी हो जाते हैं। नेहरू सर कौन सा तीर मार लिए? आजकल आप अकसर सुनते होंगे। तीर नहीं मारे इसलिए देश का हाल ये है। खैर, किसी ने बताया श्रीलंका(मैंने पहले भी कहा है नाम में कुछ नहीं रखा) में तेल के दाम में सरकार ने कटौती कर दी है। त्राहिमाम-त्राहिमाम करती जनता को छोटी राहत मिली। बाद में पता चला, सरकार ये काम पहले भी कर सकती थी, लेकिन किया नहीं। क्यों करती भाई? जब सरकार का मन, तभी तो करेगी। मन ही देवता, मन ही ईश्वर, मन की बात से बड़ा न कोई(साहिर लुधियानवी से माफ़ी माँगते हुए)। अब सारे मंत्री प्रधान को धन्यवाद दे रहे हैं। हालाँकि जनता अब भी नाराज़ है पर क्या फ़र्क़ पड़ता है। नया इवेंट चालू आहे। कुछ दिन इसका भी मज़ा लेगी जनता। मज़ा लेते रहो—मज़ा सबसे बड़ी चीज़ है। पर इतना कहना पड़ेगा—-दोनों हाथ में लड्डू होने के बावजूद कौन सा तीर मार लिए जी? लंबी-लंबी फेंक लेते हो, देश को तो बचा लो। मुझसे ही दुनिया शुरू हो रही है मुझ पर आकर खत्म होगी, यह बोलकर कौन सा तीर मार लिए? अयं?


 
 
 

Comments


Post: Blog2_Post
bottom of page